बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
उत्तर -
शैशवावस्था के बाद बालक बाल्यावस्था में प्रवेश करता है। 6 वर्ष की आयु के किशोरावस्था आरम्भ होने तक का समय बाल्यावस्था कहलाता है। मानव विकास की अवस्थाओं में. बाल्यावस्था का विशेष महत्व है। ब्लेयर, जोन्स और सिम्पसन का मत है कि “व्यक्ति के दृष्टिकोण, मूल्य एवं आदर्शों का निर्माण बाल्यावस्था में ही हो जाता है।" अतएव बाल्यावस्था का शिक्षा व्यवस्था में प्रमुख स्थान है। 6 वर्ष की आयु तक बालक का मानसिक विकास भी इतना हो जाता है कि इस आयु तक बालक की औपचारिक शिक्षा का प्रारम्भ किया जा सकता है। बाल्यावस्था को प्रारम्भिक शिक्षा का काल भी कहा जा सकता है। इस अवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) विद्यायकता - इस अवस्था में बालक को रचनात्मक कार्य करने में आनन्द आता है। वह सदैव क्रियाशील रहना पसन्द करता है। इसलिए सामान्यतः बालक घर के बाहर मिट्टी से मकान या ईट-पत्थर से मकान बनाते हुए या घर में कुछ न कुछ ठोक-पीट करते हुए दिखाई देते हैं। बालिकाएँ घर के अन्दर गुड़ियाँ आदि बनाती रहती हैं।
(2) संचय की प्रवृत्ति - बाल्यावस्था में बालक में वस्तुओं का संचय करने की प्रवृत्ति जागृत हो जाती है। इस अवस्था में जो नवीन वस्तुएँ बालक को मिलती हैं. उनका वह संग्रह करने लगता है। बालक मुख्यतः काँच की गोलियों, कंकड़, पत्थर, मशीनों के पुर्जे, पेंसिल, रबर और बालिकाएँ, कंकड़, कपड़े के टुकड़े, चूड़ियाँ आदि का संग्रह करती है।
(3) स्थायित्व - यह शारीरिक तथा मानसिक स्थिरता का समय होता है। इस अवस्था में विकास की गति धीमी होती है किन्तु शैशवावस्था में हुए शारीरिक और मानसिक विकास को दृढ़ता प्राप्त होती है। इसलिए बाल्यावस्था को “मिथ्या परिपक्वता" का काल कहा जाता है।
(4) भ्रमण की प्रवृत्ति - 9 वर्ष की उम्र के बाद बालक में भ्रमण की प्रवृत्ति अधिक विकसित हो जाती है। वह इधर-उधर निरूद्देश्य घूमने में आनन्दित होता है। अपनी इस प्रवृत्ति की संतुष्टि के लिए कुछ बालक प्राय: पाठशाला छोड़कर भाग जाते हैं या घर से गायब हो जाते हैं।
(5) प्रबल जिज्ञासा प्रवृत्ति - बाल्यावस्था में बालक के चारों ओर के वातावरण में विस्तार होने से उसमें नवीन विस्तृत वातावरण को जानने की जिज्ञासा और भी अधिक प्रबल हो जाती है। इस अवस्था में वह प्रश्नों की बौछार न करके स्वयं ही अपरिचित वस्तुओं से परिचित होने का प्रयास करता है।
(6) अनुकरण की प्रवृत्ति - शैशवावस्था में जागृत अनुकरण की प्रवृत्ति बाल्यावस्था में भी जारी रहती है। बालक अपने से बड़ों को जो कार्य करते हुये देखता है उसको अनुकरण द्वारा सीखने का प्रयास करता है। यदि माता-पिता कोई मरम्मत का काम करते हैं तो बालक उसको छुपकर दोहराता है। बालिकाएँ घर में अपनी माँ का अनुकरण करती है। वे आटा लेकर उससे रोटी बनाने का अनुकरण करती हैं।
(7) सामूहिक खेलों में रुचि - 8 वर्ष की उम्र के बाद बालक-बालिकाएँ अपने समूह के बालक-बालिकाओं में ही खेलना पसन्द करते हैं। इस आयु में लैंगिक भिन्नता अपना प्रभाव प्रकट करने लगती है। अतएव बालकों का समूह बालिकाओं के समूह से पृथक् होता है। बालक साहसयुक्त कार्य करना पसन्द करते हैं, किन्तु बालिकाएँ बालकों से भिन्न सरल कार्यों को करना पसन्द करती है।
(8) सामाजिक गुणों का विकास - बालक में सामूहिकता की प्रवृत्ति विकसित होने के कारण उसमें अनेक सामाजिक गुणों का अभ्युदय होने लगता है। वह अपने समूह के सदस्यों के प्रति स्नेह, प्रेम, सहयोग की भावना प्रकट करने लगता है। इसके साथ ही बालक में सहनशीलता बढ़ जाती है।
(9) दुराग्रह और उपद्रव की प्रवृत्ति - इस अवस्था में बालक कठोर अनुशासन को पसन्द नहीं करते हैं, उनमें दुराग्रह और उपद्रव् की प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है। कभी-कभी बालक विद्यालय से भागने लगते हैं।
(10) सामूहिक प्रवृत्ति की प्रबलता - 9 वर्ष की उम्र तक बालक में सामूहिकता की प्रवृत्ति परिपक्व हो जाती है। इस समय तक बालक किसी ने किसी समूह का सदस्य बन जाता है। वह अपना अधिकांश समय बालकों के मध्य व्यतीत करना पसन्द करता है।
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